साला समझ नहीं आ रहा है ये मौसम कौन सा चल रहा है! मच्छर काट रहे हैं कम्भ्ल भी औढ रहे हैं पंखा भी चला रहे हैं नहा भी गरम पानी से रहे हैं और पी ठंडा पानी रहे हैं लगता है कोनो फिरकी ले रहा है!
प्रिय दिसंबर, तुम कृपा वापिस आ जाओ, तुम तो सिर्फ नहाने नहीं देते थे। जनवरी तो हाथ भी धोने नहीं दे रहा।
रात को ज़ोरदार ठण्ड लगी तो मैंने योगी जी का फार्मूला आज़माया! दिसम्बर का नाम बदलकर अप्रैल रख दिया! ठण्ड फुर्र!
ठण्ड मैं एक और समस्या होती है छाँव मैं बैठ जाओ तो ठण्ड लगने लगती है और धुप मैं बैठ जाओ तो मोबाइल का डिस्प्ले नहीं दीखता।
समझ नहीं आ रहा ये मौसम कौन सा चल रहा है! मच्छर काट रहे हैं... कम्बल भी ओढ़ रहे हैं... पंखा भी चला रहे हैं और पी ठंडा पानी रहे हैं! लगता है कोनो फिरकी ले रहा है!