उलझाव का मज़ा भी

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उलझाव का मज़ा भी..
उलझाव का मज़ा भी तेरी बात ही में था
तेरा जवाब तेरे सवालात ही में था
साया किसी यक़ीं का भी जिस पर न पड़ सका
वो घर भी शहर-ए-दिल के मुज़ाफ़ात ही में था
इलज़ाम क्या है ये भी न जाना तमाम उम्र
मुल्ज़िम तमाम उम्र हवालात ही में था
अब तो फ़क़त बदन की मुरव्वत है दरमियाँ
था रब्त जान-ओ-दिल का तो शुरूआत ही में था
मुझ को तो क़त्ल करके मनाता रहा है जश्न
वो ज़िलिहाज़ शख़्स मेरी ज़ात ही में था

This is a great तेरी आँखे शायरी. If you like तेरे आंसू शायरी then you will love this. Many people like it for उम्र की शायरी.

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