​कल रोक नहीं पाए​

SHARE

​कल रोक नहीं पाए​..
​कल रोक नहीं पाए जिसे तीरों-तबर भी​;
.
अब उसको थका देती है इक राहगुज़र भी​;

​​​​​इस डर से कभी गौर से देखा नहीं तुझको​;
​​कहते हैं कि लग जाती है अपनों की नज़र भी​;

​​​​​कुछ मेरी अना भी मुझे झुकने नहीं देती​;
​​कुछ इसकी इजाज़त नहीं देती है कमर भी​;

​​​​​तुम सूखी हुई शाखों का अफ़सोस न करना​;
​​आँधी तो गिरा देती है मजबूत शजर भी​;​​
​​
​​वो मुझसे वहाँ कीमते-जाँ पूछ रहा है​;

महफूज़ नहीं है जहाँ अल्लाह का घर भी​

This is a great अपनों का दर्द शायरी. If you like अल्लाह की शायरी then you will love this. Many people like it for आपको देखा शायरी.

SHARE