लगता नहीं है जी मेरा

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लगता नहीं है जी मेरा..
लगता नहीं है जी मेरा उजड़े दयार में
किस की बनी है आलम-ए-नापायेदार में
कह दो इन हसरतों से कहीं और जा बसें
इतनी जगह कहाँ है दिल-ए-दाग़दार में
उम्र-ए-दराज़ माँग कर लाये थे चार दिन
दो आरज़ू में कट गये दो इंतज़ार में
काँटों को मत निकाल चमन से ओ बागबाँ
ये भी गुलों के साथ पले हैं बहार में
कितना है बदनसीब 'ज़फ़र' दफ़्न के लिये
दो गज़ ज़मीन भी न मिली कू-ए-यार में
अनुवाद
आलम-ए-नापायेदार = अस्थायी दुनिय
सय्याद = शिकार

This is a great मेरा बचपन शायरी. If you like मेरा नसीब शायरी then you will love this. Many people like it for मेरा गाँव शायरी. Share it to spread the love.

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