उक़ाबी शान से झपटे थे जो

SHARE

उक़ाबी शान से झपटे थे जो..
उक़ाबी शान से झपटे थे जो बे-बालो-पर निकले
सितारे शाम को ख़ून-ए-फ़लक़ में डूबकर निकले
हुए मदफ़ून-ए-दरिया ज़ेरे-दरिया तैरने वाले
तमाचे मौज के खाते थे जो बनकर गुहर निकले
गुब्बार-ए-रहगुज़र हैं कीमिया पर नाज़ था जिनको
जबीनें ख़ाक पर रखते थे जो अक्सीरगर निकले
हमारा नर्म-रौ क़ासिद पयामे-ज़िन्दगी लाया
ख़बर देतीं थीं जिनको बिजलियाँ वो बेख़बर निकले
जहाँ में अहले-ईमाँ सूरत-ए-ख़ुर्शीद जीते हैं
इधर डूबे उधर निकले, उधर डूबे इधर निकले

This is a great क़ासिद पर शायरी. If you like क़ासिद शायरी then you will love this.

SHARE