हर जनम में

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हर जनम में....
हर जनम में उसी की चाहत थे
हम किसी और की अमानत थे
उसकी आँखों में झिलमिलाती हुई
हम ग़ज़ल की कोई अलामत थे
तेरी चादर में तन समेट लिया
हम कहाँ के दराज़क़ामत थे
जैसे जंगल में आग लग जाये
हम कभी इतने ख़ूबसूरत थे
पास रहकर भी दूर-दूर रहे
हम नये दौर की मोहब्बत थे
इस ख़ुशी में मुझे ख़याल आया
ग़म के दिन कितने ख़ूबसूरत थ
दिन में इन जुगनुओं से क्या लेना
ये दिये रात की ज़रूरत थे।

This is a great अमानत शायरी. If you like आँखों का काजल शायरी then you will love this. Many people like it for शायरी आँखों की.

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