अपने जज्बातों को

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अपने जज्बातों क
अपने जज्बातों को, नाहक ही सजा देता हूँ
जब भी होती है शाम, चिरागो को बुझा देता हूँ
कह नहीं पाता हाले दिल तुम से कभी मैं
वर्ना जर्रे-जर्रे को हर किस्सा सुना देता हूँ
जब राहत मिलती नहीं किसी भी तरह से मुझे
लिखता हूँ हथेली पे तेरा नाम और मिटा देता हूँ।

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