​​ऐसे चुप है कि ये मंज़िल​

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​​ऐसे चुप है कि ये मंज़िल​...​​​

​​ऐसे चुप है कि ये मंज़िल भी कड़ी हो जैसे​;
​तेरा मिलना भी जुदाई की घड़ी हो जैसे​;​​

​​अपने ही साये से हर कदम लरज़ जाता हूँ​;
​रास्ते में कोई दीवार खड़ी हो जैसे​;

​​कितने नादाँ हैं तेरे भूलने वाले कि तुझे​;
​याद करने के लिए उम्र पड़ी हो जैसे​;

मंज़िलें दूर भी हैं, मंज़िलें नज़दीक भी हैं​;
​अपने ही पाँवों में ज़ंजीर पड़ी हो जैसे​;

​​आज दिल खोल के रोए हैं तो यों खुश हैं 'फ़राज़'​
​चंद लमहों की ये राहत भी बड़ी हो जैसे

This is a great जुदाई भरी शायरी. If you like राहत इंदोरी की शायरी then you will love this. Many people like it for ऊपर वाले शायरी. Share it to spread the love.

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