फ़राज़ अब कोई सौदा​

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फ़राज़ अब कोई सौदा​..

फ़राज़ अब कोई सौदा कोई जुनूँ भी नहीं​

मगर क़रार से दिन कट रहे हों यूँ भी नहीं​;
.

लब-ओ-दहन भी मिला गुफ़्तगू का फ़न भी मिला​
.
मगर जो दिल पे गुज़रती है कह सकूँ भी नहीं​
.
मेरी ज़ुबाँ की लुक्नत से बदगुमाँ न हो ​;
जो तू कहे तो तुझे उम्र भर मिलूँ भी नहीं​
.

"फ़राज़" जैसे कोई दिया तुर्बत-ए-हवा चाहे है​; ​

तू पास आये तो मुमकिन है मैं रहूँ भी नहीं​

This is a great अहमद फ़राज़ शायरी. If you like ताहिर फ़राज़ शायरी then you will love this. Many people like it for फ़राज़ की शायरी. Share it to spread the love.

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