जिन्दगी गुजर जाती है एक मकान बनाने में। और कुदरत उफ़ तक नहीं करती बस्तियाँ गिराने में। ना उजाड़जिन्दगी गुजर जाती हएक मकान बनाने मेंऔकुदरत उफ़ तक नहीं करती बस्तियाँ गिराने मेंना उजाड़ ए - खुदा किसी के आशियाने कोवक़्त बहुत लगता है, एक छोटा सा घर बनाने को!