आपका मक़सद पुराना हैआपका मक़सद पुराना हआपका मक़सद पुराना है मगर खंज़र नयामेरी मजबूरी है मैं लाऊँ कहाँ से सर नयामैं नया मयक़श हूँ मुझको चाहिये हर शै नयीएक मयख़ाना नया, साक़ी नया, साग़र नयादेखता हूँ तो सभी घर मुझको लगते हैं नयेसोचता हूँ तो नहीं लगता है कोई घर नयादेखिये घबरा न जाये तालियों के शोर मेंआज पहली बार आया है ये जादूगर नयाहम किसी सूरत किसी के हाथ बिक सकते नहींचाहे वो ताज़िर पुराना हो या सौदागर नयामेरा शीशे का मकाँ तामीर होने दीजियेहर किसी के हाथ में आ जायेगा पत्थर नया।
सहमा-सहमा हर इक चेहरासहमा-सहमा हर इक चेहरसहमा-सहमा हर इक चेहरा मंज़र-मंज़र ख़ून में तरशहर से जंगल ही अच्छा है चल चिड़िया तू अपने घरतुम तो ख़त में लिख देती हो घर में जी घबराता हैतुम क्या जानो क्या होता है हाल हमारा सरहद पर बेमौसम ही छा जाते हैं बादल तेरी यादों के बेमौसम ही हो जाती है बारिश दिल की धरती परआ भी जा अब जाने वाले कुछ इनको भी चैन पड़ेकब से तेरा रस्ता देखें छत, आंगन, दीवार-ओ-दरजिस की बातें अम्मा-अब्बू अक़्सर करते रहते हैं सरहद पार न जाने कैसा वो होगा पुरखों का घर।
न मिलने का वादान मिलने का वादन मिलने का वादा, न आने की बातेंकहाँ तक सुनें दिल जलाने की बातेंहमेशा वही सर झुकाने की बातेंकभी तो करो सर उठाने की बातेंकोई इस ज़माने की कहता नहीं हैसुनाते हो अपने ज़माने की बातेंकहाँ तक सुने कोई इन रहबरों कीहथेली पे सरसों उगाने की बातेंतरस खायेंगी बिजलियाँ भी यक़ीननजो सुन लें कभी आशियाने की बातेंअजब-सी लगे हैं फ़क़ीरों के मुँह सेकिसी हूर की या ख़ज़ाने की बातेंकभी जो हुईं थीं हमारी-तुम्हारी वो बातें नहीं हैं बताने की बातें
जिन्दगी में दो मिनटजिन्दगी में दो मिनजिन्दगी में दो मिनट कोई मेरे पास न बैठाआज सब मेरे पास बैठे जा रहे थेकोई तौफा ना मिला आज तक मुझेऔर आज फूल ही फूल दिए जा रहे थेतरस गया मैं किसी के हाथ से दिए एक कपडे कोऔर आज नये-नये कपडे ओढ़ाए जा रहे थेदो कदम साथ ना चलने वालेआज काफिला बन कर चले जा रहे थेआज पता चला कि मौत कितनी हसीन होती हैहम तो अस यूँ ही जिए जा रहे थे
यूँ तो यारोयूँ तो यारयूँ तो यारो थकान भारी हैफिर भी ख़ुद की तलाश जारी हैहम में हर इक में इक परिन्दा हैऔर हर इक में इक शिकारी हैलोग दुनिया में दुख से मरते हैंऔर दुख से हमारी यारी हैकितने ख़ुश हैं, उन्हें कहाँ मालूमहमने क़स्दन ये बाज़ी हारी हैदिल को बेमोल बेच आए हमअपनी-अपनी दुकानदारी है
तमाम उम्र मेरी ज़िंदगीतमाम उम्र मेरी ज़िंदगतमाम उम्र मेरी ज़िंदगी से कुछ न हुआहुआ अगर भी तो मेरी ख़ुशी से कुछ न हुआकई थे लोग किनारों से देखने वालेमगर मैं डूब गया था, किसी से कुछ न हुआहमें ये फ़िक्र के मिट्टी के हैं मकां अपनेउन्हें ये रंज कि बहती नदी से कुछ न हुआरहे वो क़ैद किसी ग़ैर के ख़यालों मेंयही वजह कि मेरी बेरुख़ी से कुछ न हुआलगी जो आग तो सोचा उदास जंगल नेहवा के साथ रही दोस्ती से कुछ न हुआमुझे मलाल बहुत टूटने का है लेकिनकरूँ मैं किससे गिला जब मुझी से कुछ न हुआ।